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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ख़ुर्शीद तलब

बोकारो, भारत

ख़ुर्शीद तलब

ग़ज़ल 25

अशआर 21

अज़ीज़ो आओ अब इक अल-विदाई जश्न कर लें

कि इस के ब'अद इक लम्बा सफ़र अफ़सोस का है

आज दरिया में अजब शोर अजब हलचल है

किस की कश्ती ने क़दम आब-ए-रवाँ पर रक्खा

मिरी मुश्किल मिरी मुश्किल नहीं है

वसीला तेरी आसानी का मैं हूँ

रोज़ दीवार में चुन देता हूँ मैं अपनी अना

रोज़ वो तोड़ के दीवार निकल आती है

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हमें हर वक़्त ये एहसास दामन-गीर रहता है

पड़े हैं ढेर सारे काम और मोहलत ज़रा सी है

पुस्तकें 3

 

ऑडियो 11

क़ुसूर-वार जो तुम हो ख़ता हमारी भी है

धुआँ उड़ाते हुए दिन को रात करते हुए

न मैं दरिया न मुझ में ज़ोम कोई बे-करानी का

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