aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
आतिशीं हुस्न क्यूँ दिखाते हो
दिल है आशिक़ का कोह-ए-तूर नहीं
हाथ पिस्ताँ पे ग़ैर का पहुँचा
आप भी अब हुए अनार-फ़रोश
हुस्न उन का अगर है संगीं-दिल
इश्क़ अपना भी सख़्त बाज़ू है
जो मुझ पर है वही है ग़ैर पर लुत्फ़
हुआ है ख़ात्मा इस पर वफ़ा का
तुम्हारे इश्क़-ए-अबरू में हिलाल-ए-ईद की सूरत
हज़ारों उँगलियाँ उट्ठीं जिधर से हो के हम निकले
Ashaar-e-Baharistan
1913
1874
दीवान-ए-वक़ार
1899
Deewan-e-Waqar
1878
1833
इख़्तिरा-ए-जदीद
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