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कृष्ण चंदर की कहानियाँ
पूरे चाँद की रात
अप्रैल का महीना था। बादाम की डालियां फूलों से लद गई थीं और हवा में बर्फ़ीली ख़ुनकी के बावजूद बहार की लताफ़त आ गई थी। बुलंद-ओ-बाला तंगों के नीचे मख़मलीं दूब पर कहीं कहीं बर्फ़ के टुकड़े सपीद फूलों की तरह खिले हुए नज़र आ रहे थे। अगले माह तक ये सपीद फूल इसी
एक तवाइफ़ का ख़त
पण्डित जवाहर लाल नेहरू और क़ाएद-ए-आज़म जिनाह के नाम मुझे उम्मीद है कि इससे पहले आपको किसी तवाइफ़ का ख़त न मिला होगा। ये भी उम्मीद करती हूँ कि कि आज तक आपने मेरी और इस क़ुमाश की दूसरी औरतों की सूरत भी न देखी होगी। ये भी जानती हूँ कि आपको मेरा ये ख़त लिखना
पेशावर एक्सप्रेस
भारत-पाकिस्तान विभाजन पर लिखी गई एक बहुत दिलचस्प कहानी। इसमें घटना है, दंगे हैं, विस्थापन है, लोग हैं, उनकी कहानियाँ, लेकिन कोई भी केंद्र में नहीं है। केंद्र में है तो एक ट्रेन, जो पेशावर से चलती है और अपने सफ़र के साथ बँटवारे के बाद हुई हैवानियत की ऐसी तस्वीर पेश करती है कि पढ़ने वाले की रुह काँप जाती है।
कालू भंगी
’कालू भंगी’ समाज के सबसे निचले तबक़े की दास्तान-ए-हयात है। उसका काम अस्पताल में हर रोज़ मरीज़ों की गंदगी को साफ़ करना है। वह तकलीफ़ उठाता है जिसकी वजह पर दूसरे लोग आराम की ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन किसी ने भी एक लम्हे के लिए भी उसके बारे में नहीं सोचा। ऐसा लगता है कि कालू भंगी का महत्व उनकी नज़र में कुछ भी नहीं। वैसे ही जैसे जिस्म शरीर से निकलने वाली ग़लाज़त की वक़अत नहीं होती। अगर सफ़ाई की अहमियत इंसानी ज़िंदगी में है, तो कालू भंगी की अहमियत उपयोगिता भी मोसल्लम है।
महालक्ष्मी का पुल
‘महालक्ष्मी का पुल’ दो समाजों के बीच की कहानी है। महालक्ष्मी के पुल दोनों ओर सूख रही साड़ियों की मारिफ़त शहरी ग़रीब महिलाओं और पुरुषों के कठिन जीवन को उधेड़ा गया है, जो उनकी साड़ियों की तरह ही तार-तार है। वहाँ बसने वाले लोगों को उम्मीद है कि आज़ादी के बाद आई जवाहर लाल नेहरू की सरकार उनका कुछ भला करेगी, लेकिन नेहरु का क़ाफ़िला वहाँ बिना रुके ही गुज़र जाता है। जो दर्शाता है कि न तो पुरानी शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह थी न ही नई शासन व्यवस्था में इनके लिए कोई जगह है।
जामुन का पेड़
जामुन का पेड़ हमारी राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक करारा व्यंग्य है। एक आदमी तूफ़ान में जामुन के पेड़ के नीचे दब जाता है। अब उसे बचाने के लिए पेड़ काटा जाए या न काटा जाए, इसी सवाल को सुलझाने के लिए प्रशासन और उसके कारिंदे इस की तरह की कार्यशैली अपनाते हैं कि आदेश आने तक व्यक्ति की मौत हो जाती है।
अमृतसर आज़ादी से पहले
जलियाँवाला बाग़ में हज़ारों का मजमा था। इस मजमे में हिंदू थे, सिक्ख भी थे और मुस्लमान भी। हिंदू मुस्लमानों से और मुस्लमान सिक्खों से अलग साफ़ पहचाने जाते थे। सूरतें अलग थीं, मिज़ाज अलग थे, तहज़ीबें अलग थीं, मज़हब अलग थे लेकिन आज ये सब लोग जलियाँवाला बाग़
अन्न-दाता
बंगाल में जब अकाल पड़ा तो शुरू में हुक्मरानों ने इसे क़हत मानने से ही इंकार कर दिया। वे हर रोज़ शानदार दावतें उड़ाते और उनके घरों के सामने भूख से बेहाल लोग दम तोड़ते रहते। वह भी उन्हीं हुक्मरानों में से एक था। शुरू में उसने भी दूसरों की तरह समस्या से नज़र चुरानी चाही। मगर फिर वह उनके लिए कुछ करने के लिए उतावला हो गया। कई योजनाएँ बनाई और उन्हें अमल में लाने के लिए संघर्ष करने लगा।
अमृतसर आज़ादी के बाद
पंद्रह अगस्त 1947-ई को हिन्दोस्तान आज़ाद हुआ। पाकिस्तान आज़ाद हुआ। पंद्रह अगस्त 1947-ई को हिन्दोस्तान भर में जश्न-ए-आज़ादी मनाया जा रहा था और कराची में आज़ाद पाकिस्तान के फ़र्हत-नाक नारे बुलंद हो रहे थे। पंद्रह अगस्त 1947-ई को लाहौर जल रहा था और अमृतसर
मोहब्बत की पहचान
वे दोनों जब एक पार्टी में मिले थे तो उन्हें लगा था कि जैसे वे एक-दूसरे को सदियों से जानते हैं। इसके बाद वे कई और पार्टियों में मिले और फिर पार्टियों से इतर भी मिलने लगे। जितने वे एक-दूसरे से मिलते रहे उनका रिश्ता उतना ही गहरा होता चला गया। मगर समस्या तब पैदा होती है जब शादी के नाम पर लड़की नौकरी छोड़ने से इंकार कर देती है और लड़का उसे ही छोड़ कर चला जाता है।
ताई इसरी
ग्रैंड मेडिकल कॉलेज कलकत्ता से लौटने पर पहली बार उसकी मुलाक़ात ताई इसरी से हुई थी। ताई इसरी ने अपनी पूरी ज़िंदगी अकेली ही गुज़ार दी। वह शादी-शुदा हो कर भी एक तरह से कुँवारी थी। उनका शौहर जालंधर में रहता था और ताई इसरी लाहौर में। मगर अकेली होने के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। और ज़िंदगी को पूरे भरपूर अंदाज़ में जिया।
आधे घंटे का ख़ुदा
वो आदमी उसका पीछा कर रहे थे। इतनी बुलंदी से वो दोनों नीचे सपाट खेतों में चलते हुए दो छोटे से खिलौनों की तरह नज़र आ रहे थे। दोनों के कंधों पर तीलियों की तरह बारीक राइफ़लें रखी नज़र आ रही थीं। यक़ीनन उनका इरादा उसे जान से मार देने का था। मगर वो लोग अभी इससे
टूटे हुए तारे
एक तन्हा ड्राइवर, जो शराब पीता है और कश्मीर की वादियों में गाड़ी चला रहा है। वह नशे के ख़ुमार में है और सड़क पर गुज़रती दूसरी सवारियों को देखकर तरह-तरह के ख़्यालों से गुज़रता है। वह डाक बंगले पर पहुँचता है और अपनी रात रंगीन करने के लिए एक मुर्ग़ी और एक औरत मँगाता है। औरत मजबूर है और अपने बीमार बेटे की दवा के लिए उस से रुपयों की दरख़्वास्त करती हैं। उस ज़रूरत-मंद औरत के साथ हमबिस्तरी और उसके बाद की ड्राइवर की कैफ़ियत और सोच को ही इस कहानी में कहा गया है।
शहज़ादा
एक के बाद एक कई लड़के सुधा को नापसंद कर के चले गए तो उसे कोई मलाल नहीं हुआ। मगर जब मोती ने उसे नापसंद किया तो उसने उसके इंकार में छुपी हुई हाँ को पहचान लिया और वह उस से मोहब्बत करने लगी। एक ख़याली मोहब्बत। जिसमें वह उसका शहज़ादा था। इसी ख़्याल में उसने अपनी पूरी उम्र तन्हा गुज़ार दी। मगर एक रोज़ उसे तब ज़बरदस्त झटका लगा जब मोती हक़ीक़त में उसके सामने आ खड़ा हुआ।
मीना बाज़ार
इंसान की हैसियत हमेशा न्यायिक फैसलों पर असर-अंदाज़ रही है। हिल स्टेशन पर आयोजित हुए उस एक ब्यूटी कॉम्पीटिशन में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। कॉम्पीटिशन में शामिल होने वाली सबसे ख़ूबसूरत लड़की को नज़र-अंदाज़ कर के कमीश्नर साहब की उस बेटी को अवॉर्ड दे दिया गया जिसके बारे में कोई गुमान भी नहीं कर सकता था।
कुँवारी
ज़िंदगी की ग़ुर्बत से तंग आकर बेहतर दिनों की तलाश में वह अपनी ख़ूबसूरत पत्नी को लेकर मुंबई चला आता है। यहाँ भी फ़िल्म स्टूडियों के चक्कर काटते हुए उसे बहुत संघर्ष करना पड़ता है। फिर अपने एक दोस्त के सुझाव पर वह अपनी पत्नी को बहन बना कर पेश करता है और एका-एक उसकी ज़िंदगी चमक उठती है। मगर यह चमक उनके मियाँ-बीवी के रिश्ते को जलाकर ख़ाक कर देती है।
दो फ़र्लांग लंबी सड़क
कचहरियों से लेकर लॉ कॉलेज तक बस यही कोई दो फ़र्लांग लंबी सड़क होगी, हर-रोज़ मुझे इसी सड़क पर से गुज़रना होता है, कभी पैदल, कभी साईकल पर, सड़क के दो रू ये शीशम के सूखे-सूखे उदास से दरख़्त खड़े हैं। इनमें न हुस्न है न छाँव, सख़्त खुरदरे तने और टहनियों पर गिद्धों
मेरा बच्चा
किसी भी औरत के पहला बच्चा होता है तो वह हर रोज़ नए-नए तरह के एहसासात से गुज़रती है। उसे दुनिया की हर चीज़ नए रंग-रूप में नज़र आने लगती है। उसकी चाहत, मोहब्बत और तवज्जोह सब कुछ उस बच्चे पर केंद्रित हो कर रह जाती है। एक माँ अपने बच्चे के बारे में क्या-क्या सोचती है वही सब इस कहानी में बयान किया गया है।
भगत राम
अभी-अभी मेरे बच्चे ने मेरे बाएं हाथ की छंगुलिया को अपने दाँतों तले दाब कर इस ज़ोर का काटा कि मैं चिल्लाए बग़ैर ना रह सका और मैंने गु़स्सो में आकर उसके दो, तीन तमांचे भी जड़ दिए बेचारा उसी वक़्त से एक मासूम पिल्ले की तरह चिल्ला रहा है। ये बच्चे कम्बख़्त
पहला दिन
हर साल की तरह उस साल भी परिवार गर्मियों की छुट्टियों में मसूरी गया तो उनके साथ बूढ़ी और कुँवारी ख़ादिमा मैगी भी थी। परिवार का वहाँ अच्छा वक़्त बीत रहा था कि तभी बच्चों के लिए एक 70 साला मास्टर नियुक्त कर लिया गया। मास्टर से मिलकर मैगी की तो मानो सोई हुई ख़्वाहिशें जाग उठीं। मगर एक रोज़ जब मैगी की सहेली पाम भी वहाँ पहुँच गई और फिर सब कुछ बदल गया।
चांदी का कमरबंद
हर दो-तीन साल के वक़्फ़े पर एक शादी-शुदा शख़्स अलग-अलग शहरों में जाता है और वहाँ ख़ूबसूरत और अमीर औरतों से इश्क़ फरमा कर उन्हें ठगता है। उस बार वह कलकत्ता जाता है। कलकत्ता में दो महीने रहने के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिलता है। फिर अचानक ही एक और नौजवान, ख़ूबसूरत और अमीर लड़की से उसकी मुलाक़ात होती है। वह बहुत सजी-सँवरी है। उसकी कमर के नीचे और कूल्हों के उभार से थोड़ा ऊपर एक चाँदी का कमरबंद बंधा है। यह ख़ूबसूरत लड़की उल्टे कैसे इसी शख़्स को अपना शिकार बना लेती है यही इस कहानी में बयान किया गया है।
ग़ालीचा
"यह तकनीक के प्रयोग के रूप में लिखी गई कहानी है। कई दृश्यों को जमा करके एक ग़ालीचा को साकार मान कर कहानी बुनी गई है। रूपवती अतिसुंदर, इटली की एक शिक्षित औरत है जो एक स्थानीय कॉलेज में प्रिंसिपल है। आर्टिस्ट की मुलाक़ात ग़ालीचा ख़रीदते वक़्त होती है और आर्टिस्ट उसके हुस्न से घायल हो जाता है, लेकिन रूपवती पहले तो इटली के शायर जो से अपनी मुहब्बत का इज़हार करती है जो तपेदिक़ में मुब्तला हो कर मर गया था और बाद में आर्टिस्ट के दोस्त मजहूल किस्म के शायर से मुहब्बत का इन्किशाफ़ करती है और उससे शादी करके दूसरे शहर चली जाती है। ग़ालीचा विभिन्न घटनाओं व दृश्यों का गवाह रहता है, इसीलिए आर्टिस्ट अक्सर उससे सवाल-जवाब करता है। आर्टिस्ट दूसरी लड़कियों में यदाकदा दिलचस्पी लेता है लेकिन रूपवती उसके हवास पर छाई रहती है। एक दिन स्टेशन पर उसे रूपवती मिल जाती है और उसे पता चलता है कि रूपवती तपेदिक़ में मुब्तला है, उसके शायर शौहर ने उसे छोड़ दिया है।"
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