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एम एस नाज़ की बच्चों की कहानियाँ
नेकी का रास्ता
रात का वक़्त था। अंधेरा फैल चुका था कि हवेली के दरवाज़े पर किसी ने ज़ोर-ज़ोर से दस्तक दी। एक बुज़ुर्ग ने दरवाज़ा खोला तो बाहर एक नौजवान बेहोश पड़ा था। बुज़ुर्ग ने उसे उठाया और नरम-ओ-गुदगुदे बिस्तर पर लाकर लिटा दिया। नौजवान को होश आया तो उस के सामने सफ़ेद
तोतली शहज़ादी
शमा, नन्ही मुनी प्यारी सी लड़की थी। ख़ूबसूरत गोल गोल आँखें, सेब जैसे होंट और अनार की तरह उसका सुर्ख़ रंग था। वो आँखें झपक कर बातें करती। उसका चेहरा हर वक़्त मुस्कुराता रहता था। हंसते हंसते उसका बुरा हाल हो जाता और उसकी अक्सर हिचकी बंध जाती। इस मौक़ा पर
एक भूत दो जिन्न
साक़िब बहुत ही मेहनती लड़का था। वो अपने स्कूल का काम दिल लगा कर करता और शाम को अपने ग़रीब बाप का हाथ बटाने के लिए दुकान पर बैठ जाता। उसने एक ख़ूबसूरत मैना पाल रखी थी। ये मैना उस से बड़ी मीठी मीठी, प्यारी प्यारी बातें करती। साक़िब अपनी भोली मैना से कहता ‘‘मैं
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बाल-साहित्य1969
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