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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Majrooh Sultanpuri's Photo'

मजरूह सुल्तानपुरी

1919 - 2000 | मुंबई, भारत

भारत के सबसे प्रमुख प्रगतिशील ग़ज़ल-शायर/प्रमुख फि़ल्म गीतकार/दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित

भारत के सबसे प्रमुख प्रगतिशील ग़ज़ल-शायर/प्रमुख फि़ल्म गीतकार/दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Mana shab-e-gham subh ki mehram to nahin hai

मजरूह सुल्तानपुरी

आ ही जाएगी सहर मतला-ए-इम्काँ तो खुला

मजरूह सुल्तानपुरी

गो रात मिरी सुब्ह की महरम तो नहीं है

मजरूह सुल्तानपुरी

चमन है मक़्तल-ए-नग़्मा अब और क्या कहिए

मजरूह सुल्तानपुरी

जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले

मजरूह सुल्तानपुरी

ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए

मजरूह सुल्तानपुरी

मुझ से कहा जिब्रील-ए-जुनूँ ने ये भी वहइ-ए-इलाही है

मजरूह सुल्तानपुरी

हमें शुऊर-ए-जुनूँ है कि जिस चमन में रहे

मजरूह सुल्तानपुरी

आह-ए-जाँ-सोज़ की महरूमी-ए-तासीर न देख

मजरूह सुल्तानपुरी

गो रात मिरी सुब्ह की महरम तो नहीं है

मजरूह सुल्तानपुरी

चमन है मक़्तल-ए-नग़्मा अब और क्या कहिए

मजरूह सुल्तानपुरी

जब हुआ इरफ़ाँ तो ग़म आराम-ए-जाँ बनता गया

मजरूह सुल्तानपुरी

जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले

मजरूह सुल्तानपुरी

जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले

मजरूह सुल्तानपुरी

ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए

मजरूह सुल्तानपुरी

ब-नाम-ए-कूचा-ए-दिलदार गुल बरसे कि संग आए

मजरूह सुल्तानपुरी

मुझ से कहा जिब्रील-ए-जुनूँ ने ये भी वहइ-ए-इलाही है

मजरूह सुल्तानपुरी

हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा

मजरूह सुल्तानपुरी

हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुम से ज़ियादा

मजरूह सुल्तानपुरी

हमें शुऊर-ए-जुनूँ है कि जिस चमन में रहे

मजरूह सुल्तानपुरी

हमें शुऊर-ए-जुनूँ है कि जिस चमन में रहे

मजरूह सुल्तानपुरी

हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह

मजरूह सुल्तानपुरी

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हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह

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