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मख़मूर देहलवी

1900 - 1956 | दिल्ली, भारत

प्रतिष्ठित शायर, अपने शेर " मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं " के लिए मशहूर

प्रतिष्ठित शायर, अपने शेर " मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं " के लिए मशहूर

मख़मूर देहलवी

ग़ज़ल 8

अशआर 11

मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं

ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता

किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता

यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता

मोहब्बत हो तो जाती है मोहब्बत की नहीं जाती

ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है भड़काया नहीं जाता

मुसाफ़िर अपनी मंज़िल पर पहुँच कर चैन पाते हैं

वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता

मोहब्बत बद-गुमाँ हो जाए तो ज़िंदा नहीं रहती

असर दिल पर तुम्हारी बे-रुख़ी से कुछ नहीं होता

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