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मनमोहन तल्ख़

1931 - 2001 | दिल्ली, भारत

प्रमुख आधुनिक शायर/यास यगाना चंगेज़ी के शार्गिद

प्रमुख आधुनिक शायर/यास यगाना चंगेज़ी के शार्गिद

मनमोहन तल्ख़

ग़ज़ल 34

नज़्म 4

 

अशआर 14

मैं ख़ुद में गूँजता हूँ बन के तेरा सन्नाटा

मुझे देख मिरी तरह बे-ज़बाँ बन कर

किसी के साथ होने के दुख भी झेले हैं

किसी के साथ मगर और भी अकेले हैं

शिकायत और तो कुछ भी नहीं इन आँखों से

ज़रा सी बात पे पानी बहुत बरसता है

दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ

ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है

हम कई रोज़ से बे-वजह बहुत ख़ुश हैं चलो

ज़िंदगी की ये अदाएँ भी तो देखी जाएँ

पुस्तकें 12

ऑडियो 9

अभी शुऊर ने बस दुखती रग टटोली है

आएँ आँसू अगर आँखों में तो बस पी जाएँ

कुछ देर तो सब कुछ टूटने का माहौल रहा

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