मंसूर उस्मानी के शेर
शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम
'मंसूर' न माँगेंगे दुआ और तरह की
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ये अलग बात कि अल्फ़ाज़ हैं मेरे लेकिन
सच तो बस ये है कि तेरी ही सदा है मुझ में
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हालात क्या ये तेरे बिछड़ने से हो गए
लगता है जैसे हम किसी मेले में खो गए
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जहाँ जहाँ कोई उर्दू ज़बान बोलता है
वहीं वहीं मिरा हिन्दोस्तान बोलता है
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टैग : उर्दू
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पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया
फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो
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टैग : आहट
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ख़ुदा के नाम पे क्या क्या फ़रेब देते हैं
ज़माना-साज़ ये रहबर भी मैं भी दुनिया भी
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आँखों से मोहब्बत के इशारे निकल आए
बरसात के मौसम में सितारे निकल आए
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ख़ुशबू का क़ाफ़िला ये बहारों का सिलसिला
पहुँचा है शहर तक तो मिरे घर भी आएगा
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जिस को बचाए रखने में अज्दाद बिक गए
हम ने उसी हवेली को नीलाम कर दिया
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जो फाँस चुभ रही है दिलों में वो तू निकाल
जो पाँव में चुभी थी उसे हम निकाल आए
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अपनी तारीफ़ सुनी है तो ये सच भी सुन ले
तुझ से अच्छा तिरा किरदार नहीं हो सकता
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ख़ुशबू से किस ज़बान में बातें करेंगे लोग
महफ़िल में ये सवाल तुझे देख कर हुआ
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मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए
शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में
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टैग : दिल
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हम ने कुछ गीत लिखे हैं जो सुनाना हैं तुम्हें
तुम कभी बज़्म सजाना तो ख़बर कर देना
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जिस सदी में वफ़ा का चलन ही नहीं
हम बनाए गए उस सदी के लिए
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इस शहर में चलती है हवा और तरह की
जुर्म और तरह के हैं सज़ा और तरह की
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