मंज़र अय्यूबी के शेर
किसी लब पे हर्फ़-ए-सितम तो हो कोई दुख सुपुर्द-ए-क़लम तो हो
ये बजा कि शहर-ए-मलाल में कोई 'फ़ैज़' है कोई 'मीर' है
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किसी भी घर में सही रौशनी तो है हम से
नुमूद-ए-सुब्ह से पहले तो मत बुझाओ हमें
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