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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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मंज़र सलीम

1925 - 1996 | लखनऊ, भारत

मंज़र सलीम

ग़ज़ल 7

नज़्म 1

 

अशआर 3

सूरज चढ़ा तो पिघली बहुत चोटियों की बर्फ़

आँधी चली तो उखड़े बहुत साया-दार लोग

अब राह-ए-वफ़ा के पत्थर को हम फूल नहीं समझेंगे कभी

पहले ही क़दम पर ठेस लगी दिल टूट गया अच्छा ही हुआ

दहशत खुली फ़ज़ा की क़यामत से कम थी

गिरते हुए मकानों में बैठे यार लोग

 

लेख 1

 

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