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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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मक़बूल नक़्श

ग़ज़ल 6

अशआर 3

क्या मेरी तरह ख़ानमाँ-बर्बाद हो तुम भी

क्या बात है तुम घर का पता क्यूँ नहीं देते

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पत्थर भी चटख़्ते हैं तो दे जाते हैं आवाज़

दिल टूट रहे हैं तो सदा क्यूँ नहीं देते

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यूँ तो अश्कों से भी होता है अलम का इज़हार

हाए वो ग़म जो तबस्सुम से अयाँ होता है

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पुस्तकें 3

 

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