aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1942 | लखनऊ, भारत
जो कह रहे थे ख़ून से सींचेंगे गुल्सिताँ
वो हामियान-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ किधर गए
नज़र करता नहीं नश्शा-लबों पर
कि जिस के हाथ पैमाने लगे हैं
मज़ाक़-ए-ख़ुद-परस्ती एक कमज़ोरी है इंसाँ की
बयाँ कर के हक़ीक़त ये उठाया है ज़ियाँ हम ने
वो और होंगे जिन को है फ़िक्र-ए-ज़ियान-ओ-सूद
दुनिया से बे-नियाज़ है मेरी ग़ज़ल का रंग
हर शय से हो के क्यों न रहे बे-नियाज़ वो
हर शय जहाँ में जिस को तमाशा दिखाई दे
Sulagte Phool Dhalakte Aansu
1973
Sulagte Phool Dhalakte Ansu
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