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Mazhar Mirza Jaan-e-Janaan's Photo'

मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ

1699 - 1781 | दिल्ली, भारत

मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ

ग़ज़ल 5

 

अशआर 8

ख़ुदा के वास्ते इस को टोको

यही इक शहर में क़ातिल रहा है

ये हसरत रह गई क्या क्या मज़े से ज़िंदगी करते

अगर होता चमन अपना गुल अपना बाग़बाँ अपना

रुस्वा अगर करना था आलम में यूँ मुझे

ऐसी निगाह-ए-नाज़ से देखा था क्यूँ मुझे

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ये दिल कब इश्क़ के क़ाबिल रहा है

कहाँ इस को दिमाग़ दिल रहा है

जो तू ने की सो दुश्मन भी नहीं दुश्मन से करता है

ग़लत था जानते थे तुझ को जो हम मेहरबाँ अपना

पुस्तकें 10

 

चित्र शायरी 2

 

वीडियो 3

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चली अब गुल के हाथों से लुटा कर कारवाँ अपना

ख़ुर्शीद बेगम

हम ने की है तौबा और धूमें मचाती है बहार

मेहदी हसन

ऑडियो 5

उस गुल को भेजना है मुझे ख़त सबा के हाथ

चली अब गुल के हाथों से लुटा कर कारवाँ अपना

तजल्ली गर तिरी पस्त ओ बुलंद उन को न दिखलाती

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