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मीर अनीस

1803 - 1874 | लखनऊ, भारत

लखनऊ के अग्रगी क्लासिकी शायरों में विख्यात/मर्सिया के महान शायर

लखनऊ के अग्रगी क्लासिकी शायरों में विख्यात/मर्सिया के महान शायर

मीर अनीस

अशआर 15

आशिक़ को देखते हैं दुपट्टे को तान कर

देते हैं हम को शर्बत-ए-दीदार छान कर

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अश्क-ए-ग़म दीदा-ए-पुर-नम से सँभाले गए

ये वो बच्चे हैं जो माँ बाप से पाले गए

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'अनीस' दम का भरोसा नहीं ठहर जाओ

चराग़ ले के कहाँ सामने हवा के चले

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तमाम उम्र जो की हम से बे-रुख़ी सब ने

कफ़न में हम भी अज़ीज़ों से मुँह छुपा के चले

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'अनीस' आसाँ नहीं आबाद करना घर मोहब्बत का

ये उन का काम है जो ज़िंदगी बर्बाद करते हैं

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ग़ज़ल 9

मर्सिया 11

रुबाई 68

पुस्तकें 125

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नूर जहाँ

Zia Mohiuddin recites Marsia Mir Anees Part 1

Zia Mohiuddin recites Marsia Mir Anees Part 1 ज़िया मोहीउद्दीन

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ज़मीर अख़्तर नक़वी

हफ़ीज़ जालंधरी

मोहसिन अब्बास

ज़मीर अख़्तर नक़वी

ज़मीर अख़्तर नक़वी

जौहर अब्बास

ज़मीर अख़्तर नक़वी

लता मंगेशकर

नुसरत फ़तह अली ख़ान

कोई अनीस कोई आश्ना नहीं रखते

अली असग़र

जब क़तअ' की मसाफ़त-ए-शब आफ़ताब ने

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

जब रन में सर-बुलंद अली का अलम हुआ

अज्ञात

बख़ुदा फ़ारस-ए-मैदान-ए-तहव्वुर था 'हुर'

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

ऑडियो 5

कोई अनीस कोई आश्ना नहीं रखते

ख़ुद नवेद-ए-ज़िंदगी लाई क़ज़ा मेरे लिए

नुमूद ओ बूद को आक़िल हबाब समझे हैं

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