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मीर तक़ी मीर

1723 - 1810 | दिल्ली, भारत

उर्दू के पहले बड़े शायर जिन्हें 'ख़ुदा-ए-सुख़न' (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है

उर्दू के पहले बड़े शायर जिन्हें 'ख़ुदा-ए-सुख़न' (शायरी का ख़ुदा) कहा जाता है

मीर तक़ी मीर की चित्र शायरी

रोते फिरते हैं सारी सारी रात

जिन के लिए अपने तो यूँ जान निकलते हैं

रोते फिरते हैं सारी सारी रात

सारे आलम पर हूँ मैं छाया हुआ

कुछ करो फ़िक्र मुझ दिवाने की

बे-ख़ुदी ले गई कहाँ हम को

'मीर' अमदन भी कोई मरता है

तुझी पर कुछ ऐ बुत नहीं मुनहसिर

तुझी पर कुछ ऐ बुत नहीं मुनहसिर

कोई तुम सा भी काश तुम को मिले

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