जहाँदार, मीरज़ा जवाँ बख़्श मुग़ल शहंशाह शाह आलम के बेटे और वली-अह्द (उचयधिकारी) थे, मगर दरबारी साजिशों से तंग आकर, लाल क़िला और भारी राजपाट छोड़ा और लखनऊ चले गए फिर कुछ दिन बाद बनारस में जा बसे। नवाब आसिफ़ुद्दौला ने उन्हें संरक्षग दिया। अंग्रेज़ों ने भी पेंशन बाँध रखी थी।