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Asad Ullah Khan Ghalib-Safar - Part 2 - Zubaan-e-Ishq मुज़फ्फर अली
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक उस्बताद बरकत अली ख़ान
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक इक़बाल बानो
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई बेगम अख़्तर
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उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए उस्बताद बरकत अली ख़ान
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एक जा हर्फ़-ए-वफ़ा लिक्खा था सो भी मिट गया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कब वो सुनता है कहानी मेरी मिर्ज़ा ग़ालिब
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से एम. कलीम
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से एम. कलीम
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कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं एजाज़ हुसैन हज़रावी
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कोई उम्मीद बर नहीं आती मलिका पुखराज
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कोई उम्मीद बर नहीं आती ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कोई दिन गर ज़िंदगानी और है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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चाहिए अच्छों को जितना चाहिए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है मोहम्मद रफ़ी
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ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना नसीम बेगम
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जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले ख़ुर्शीद बेगम
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले इक़बाल बानो
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले इक़बाल बानो
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले मलिका पुखराज
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है मेहदी हसन
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है हरिहरण
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है अज्ञात
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दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या लुतफ़ुल्लाह ख़ान
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धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने मोहम्मद रफ़ी
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फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है अज्ञात
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बे-ए'तिदालियों से सुबुक सब में हम हुए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना मोहम्मद रफ़ी
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे मोहम्मद रफ़ी
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मैं हूँ मुश्ताक़-ए-जफ़ा मुझ पे जफ़ा और सही मोहम्मद रफ़ी
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए मोहम्मद रफ़ी
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए इक़बाल बानो
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए फ़रीदा ख़ानम
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वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो ज़मर्रुद बानो
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वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ मेहदी हसन
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सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और मोहम्मद रफ़ी
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है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और ज़मर्रुद बानो
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले हबीब वली मोहम्मद
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है अज्ञात
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हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायाँ मुझ से ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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gai wo baat ki ho guftugu to kyunkar ho मेहनाज़ बेगम
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hai bas-ki har ek un ke ishaare mein nishan aur नूर जहाँ
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hairan hun dil ko roun ki piTun jigar ko main महेन्द्र कपूर
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hairan hun dil ko roun ki piTun jigar ko main सी एच आत्मा
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har ek baat pe kahte ho tum ki tu kya hai ग़ुलाम अली
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hum par jafa se tark-e-wafa ka guman nahin फ़रीदा ख़ानम
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husn ghamze ki kashakash se chhuTa mere baad हामिद अली ख़ान
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ibn-e-maryam hua kare koi फ़रीदा ख़ानम
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jab tak dahan-e-zaKHm na paida kare koi मेहदी हसन
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kisi ko de ke dil koi nawa-sanj-e-fughan kyun ho सुरैया
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koi din gar zindagani aur hai मेहदी हसन
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koi din gar zindagani aur hai विनोद सहगल
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phir mujhe dida-e-tar yaad aaya बेगम अख़्तर
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rahiye ab aisi jagah chal kar jahan koi na ho टॉम आल्टर
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rone se aur ishq mein bebak ho gae अमानत अली ख़ान
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wo aa ke KHwab mein taskin-e-iztirab to de ग़ुलाम अली
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y7tBSqNjigU गोपी चंद नारंग
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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा जगजीत सिंह
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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा मेहदी हसन
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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा ज़ाहिदा परवीन
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आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे सायरा नसीम
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक हबीब वली मोहम्मद
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक मेहदी हसन
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक श्रुति पाठक
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक उस्बताद बरकत अली ख़ान
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक हुसैन बख्श
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक मेहरान अमरोही
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक अज्ञात
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक जगजीत सिंह
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक शबाना कौसर
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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई अज्ञात
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही कुंदन लाल सहगल
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही अज्ञात
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही चित्रा सिंह
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही तलअत महमूद
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही फ़रीदा ख़ानम
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही एजाज़ हुसैन हज़रावी
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इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही फ़िरोज़ा बेगम
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इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना मेहरान अमरोही
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इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना शुमोना राय बिस्वास
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उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए एम. कलीम
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उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कब वो सुनता है कहानी मेरी हामिद अली ख़ान
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क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख कर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए सी एच आत्मा
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कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया रुना लैला
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कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो शैली कपूर
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किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो एम. कलीम
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की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं मेहरान अमरोही
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कोई उम्मीद बर नहीं आती भारती विश्वनाथन
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कोई उम्मीद बर नहीं आती बेगम अख़्तर
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कोई उम्मीद बर नहीं आती अज्ञात
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कोई दिन गर ज़िंदगानी और है मेहरान अमरोही
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ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ कुमार मुख़र्जी
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ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है ज़िया मोहीउद्दीन
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ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर भारती विश्वनाथन
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जुज़ क़ैस और कोई न आया ब-रू-ए-कार ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है मोहम्मद रफ़ी
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ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है शैली कपूर
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं सुधीर नारायण
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं उबैदुल्लाह अलीम
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं मलिका पुखराज
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं शाहिदा हसन
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं ग़ुलाम अली
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं नाहीद अख़्तर
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जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं अज्ञात
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ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना बेगम अख़्तर
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जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे सय्यद ताहिर हसनी
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तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो मेहरान अमरोही
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तुम जानो तुम को ग़ैर से जो रस्म-ओ-राह हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले बेगम अख़्तर
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले राहत फ़तह अली
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले उस्बताद बरकत अली ख़ान
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देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ अज्ञात
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ जगजीत सिंह
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ बेगम अख़्तर
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दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए मलिका पुखराज
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दहर में नक़्श-ए-वफ़ा वजह-ए-तसल्ली न हुआ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं मेहदी हसन
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं बेगम अख़्तर
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं मेहरान अमरोही
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं असद अमानत अली
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए एम. कलीम
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए इक़बाल बानो
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए इक़बाल बानो
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दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल मिरा सोज़-ए-निहाँ से बे-मुहाबा जल गया सुंबुल राजा
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई कुंदन लाल सहगल
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई मुनव्वर सुल्ताना
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई भारती विश्वनाथन
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ आबिदा परवीन
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ शैली कपूर
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ शुमोना राय बिस्वास
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ जगजीत सिंह
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ अज्ञात
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है अज्ञात
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है कविता सेठ
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है गायत्री अशोकन
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है फरीहा परवेज़
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है शुमोना राय बिस्वास
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है आबिदा परवीन
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है भारती विश्वनाथन
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है तलअत महमूद
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है तलअत महमूद
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है तलअत महमूद
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दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या मेहरान अमरोही
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दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्या जगजीत सिंह
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धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द था ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता जगजीत सिंह
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने ज़िया मोहीउद्दीन
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने मेहरान अमरोही
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने असद सलाहुद्दीन
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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का तलअत महमूद
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नक़्श फ़रियादी है किस की शोख़ी-ए-तहरीर का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब नाज़िश
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नफ़स न अंजुमन-ए-आरज़ू से बाहर खींच ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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फिर इस अंदाज़ से बहार आई नसीम बेगम
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फिर इस अंदाज़ से बहार आई फ़िरदौसी बेगम
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फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है मेहरान अमरोही
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फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है आबिदा परवीन
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फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया तलअत महमूद
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फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया लता मंगेशकर
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फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया कुंदन लाल सहगल
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बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना अज्ञात
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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना शुमोना राय बिस्वास
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे मेहरान अमरोही
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे सुरैया
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे जगजीत सिंह
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बिसात-ए-इज्ज़ में था एक दिल यक क़तरा ख़ूँ वो भी ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें कुंदन लाल सहगल
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मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें एम. कलीम
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मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं अमानत अली ख़ान
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मज़े जहान के अपनी नज़र में ख़ाक नहीं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए नूर जहाँ
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए भूपिंदर सिंह
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए इक़बाल बानो
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महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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मिलती है ख़ू-ए-यार से नार इल्तिहाब में अली रज़ा
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता भारती विश्वनाथन
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता बेगम अख़्तर
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता हबीब वली मोहम्मद
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता फरीहा परवेज़
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अज्ञात
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रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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रहिए अब ऐसी जगह चल कर जहाँ कोई न हो सुरैया
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रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए लता मंगेशकर
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लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे उस्बताद बरकत अली ख़ान
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वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ जगजीत सिंह
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वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ मेहरान अमरोही
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शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकला एजाज़ हुसैन हज़रावी
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सताइश-गर है ज़ाहिद इस क़दर जिस बाग़-ए-रिज़वाँ का ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सद जल्वा रू-ब-रू है जो मिज़्गाँ उठाइए ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं अज्ञात
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं कमला झरिया
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सरापा रेहन-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-उल्फ़त-हस्ती ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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सादगी पर उस की मर जाने की हसरत दिल में है मेहदी हसन
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सिम्राट छाबरा सिम्राट छाबरा
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है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था फ़रीदा ख़ानम
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले एम. कलीम
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले फ़्रांसेस डब्ल्यू प्रीचेट
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हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले अज्ञात
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हम पर जफ़ा से तर्क-ए-वफ़ा का गुमाँ नहीं मेहदी हसन
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हम रश्क को अपने भी गवारा नहीं करते शिशिर पारखी
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है अज्ञात
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है फरीहा परवेज़
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हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं मेहरान अमरोही
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हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं हबीब वली मोहम्मद
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हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं मेहदी हसन
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हरीफ़-ए-मतलब-ए-मुश्किल नहीं फ़ुसून-ए-नियाज़ ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हवस को है नशात-ए-कार क्या क्या मेहनाज़ बेगम
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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द मेहदी हसन
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हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द बेगम अख़्तर
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कुंदन लाल सहगल
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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई शुमोना राय बिस्वास
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उस बज़्म में मुझे नहीं बनती हया किए मेहदी हसन
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कोई उम्मीद बर नहीं आती लता मंगेशकर
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कोई दिन गर ज़िंदगानी और है मुन्नी बेगम
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ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना मोहम्मद रफ़ी
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले इक़बाल बानो
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दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ मोहम्मद रफ़ी
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दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए मोहम्मद रफ़ी
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दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई राहत फ़तह अली
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने जद्दनबाई
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मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए मोहम्मद रफ़ी
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता इक़बाल बानो
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं हिना नसरुल्लाह
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है कुंदन लाल सहगल
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक विविध
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इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई कुंदन लाल सहगल
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से नूर जहाँ
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तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले नूर जहाँ
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दाइम पड़ा हुआ तिरे दर पर नहीं हूँ मैं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ बेगम अख़्तर
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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है पीनाज़ मसानी
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने कुंदन लाल सहगल
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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे मोहम्मद रफ़ी
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सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी
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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है विविध
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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक बेगम अख़्तर
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कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से लता मंगेशकर
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दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ शफ़क़त अमानत अली
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नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने आबिदा परवीन
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अमानत अली ख़ान
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ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता चित्रा सिंह