मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल 41
नज़्म 5
अशआर 60
ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते
कि अब मरीज़ को अच्छा था क़िबला-रू करते
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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