मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल 31
नज़्म 8
अशआर 18
आसमानों में उड़ा करते हैं फूले फूले
हल्के लोगों के बड़े काम हवा करती है
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अपने जलने का हमेशा से तमाशाई हूँ
आग ये किस ने लगाई मुझे मालूम नहीं
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आँखों में उस की मैं ने आख़िर मलाल देखा
किन किन बुलंदियों पर अपना ज़वाल देखा
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कुछ छलकता है कुछ बिखरता है
सब मिले तो भी सब नहीं मिलता
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वो कूदते उछलते रंगीन पैरहन थे
मासूम क़हक़हों में उड़ता गुलाल देखा
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