मोहम्मद फ़ीरोज़ शाह
ग़ज़ल 4
अशआर 1
'फ़ीरोज़' मैं ने ख़ुद ही सलासिल पहन लिए
मुमकिन नहीं है अब तो रिहाई मिरे लिए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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