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मोहम्मद हसन असकरी

1919 - 1978 | कराची, पाकिस्तान

प्रसिद्ध आलोचक, अनुवादक और कहानीकार. अपनी असाधारण आलोचनात्मक आलेखों के लिए मशहूर जिनके द्वारा उर्दू आलोचन में किसी हद तक पाश्चात्य चिन्तन का ज्ञान हुआ. अंतिम समय में इस्लामी साहित्य के सिद्धांत बनाने का काम भी किया.

प्रसिद्ध आलोचक, अनुवादक और कहानीकार. अपनी असाधारण आलोचनात्मक आलेखों के लिए मशहूर जिनके द्वारा उर्दू आलोचन में किसी हद तक पाश्चात्य चिन्तन का ज्ञान हुआ. अंतिम समय में इस्लामी साहित्य के सिद्धांत बनाने का काम भी किया.

मोहम्मद हसन असकरी

लेख 26

कहानी 4

 

उद्धरण 42

अदब बे-नफ़्सेही एक नए तवाज़ुन की तलाश है और इंक़लाब के तसव्वुर में तवाज़ुन की जगह ही नहीं रखी गई। इंक़लाब के तसव्वुर से मोअस्सिर अदब तो पैदा हो सकता है, मगर बड़ा अदब पैदा नहीं हो सकता।

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इंक़लाब का असली मफ़हूम ख़ूँ-रेज़ी और तख़रीब नहीं, महज़ किसी-न-किसी तरह की तब्दीली को दर-अस्ल इंक़लाब कहते हैं। यह तो इंक़लाब के सबसे सस्ते मानी हैं। असली इंक़लाब तो बग़ैर ख़ून बहाए भी हो सकता है।

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अगर अदब में फ़ुहश मौजूद है, तो उसे हव्वा बनाने की कोई माक़ूल वजह नहीं। अगर आप लोगों को फ़ुहश की मुज़र्रतों से बचाना चाहते हैं, तो उन्हें यह समझने का मौक़ा दीजिए कि क्या चीज़ आर्ट है और क्या नहीं है। जो शख़्स आर्ट के मज़े से वाक़िफ़ हो जाएगा उसके लिए फ़ुहश अपने-आप फुसफुसा हो कर रह जाएगा।

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मुहावरे सिर्फ़ ख़ूबसूरत फ़िक़रे नहीं, ये तो इज्तिमाई तजरबे के टुकड़े हैं, जिनमें समाज की पूरी शख़्सियत बसती है।

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मुझे हक़ीक़त की निस्बत अफ़सानों से ज़्यादा शग़फ़ है। क्योंकि जब तक हक़ीक़त पर इंसानों के तख़य्युल का अमल नहीं होता, वो मुर्दा रहती है।

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