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मोहम्मद हसन असकरी की कहानियाँ
हराम जादी
दरवाज़े की धड़ धड़ और "किवाड़ खोलो" की मुसलसल और ज़िद्दी चीख़ें उसके दिमाग़ में इस तरह गूंजी जैसे गहरे तारीक कुएँ में डोल के गिरने की तवील, गरजती हुई आवाज़। उसकी पुर-ख़्वाब-व-नीम रज़ामंद आँखें आहिस्ता आहिस्ता खुलीं लेकिन दूसरे लम्हे ही मुँह अंधेरे के हल्के हल्के
चाय की प्याली
हालाँकि वो ये देखना तो चाहती थी कि इस एक साल के दौरान में कौन-कौन सी नई दुकानें खुली हैं, कौन-कौन से पुराने चेहरे अभी तक नज़र आते हैं, वो गोरा गोरा सुनार का लड़का अब भी दुकान पर बैठा हुआ अपने बालों पर हाथ फेरता रहता है या नहीं, सिंगर के एजैंट के यहाँ वो
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बाल-साहित्य1969
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