मोहम्मद सालिम के शेर
प्यास के शहर में दरिया भी सराबों का मिला
मंज़िल-ए-शौक़ तरसती रही पानी के लिए
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भूल गया हूँ सब कुछ 'सालिम' मुझ को कुछ भी याद नहीं
यादों के आईने में अब इक इक चेहरा धुँदला है
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