मोहम्मद विलायतुल्लाह के शेर
बज़्म-ए-अग़्यार में उस ने मुझे दरयाफ़्त किया
बा'द मुद्दत के उसे याद मिरी आई है
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पए दरयाफ़्त असरार-ए-हक़ीक़त सब हैं सरगर्दां
फ़लक के पार लेकिन अक़्ल-ए-इंसानी नहीं जाती
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