मुबारक मुंगेरी के शेर
तिरा करम है जो साया-फ़गन तो क्या ग़म है
हज़ार बार मिरे सर से आसमाँ गुज़रे
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जो कम-निगाह थे वही अहल-ए-नज़र बने
हम को हमारे दीदा-ए-बीना से क्या मिला
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