- पुस्तक सूची 180548
-
-
पुस्तकें विषयानुसार
-
बाल-साहित्य1867
औषधि773 आंदोलन280 नॉवेल / उपन्यास4033 -
पुस्तकें विषयानुसार
- बैत-बाज़ी11
- अनुक्रमणिका / सूची5
- अशआर62
- दीवान1389
- दोहा65
- महा-काव्य98
- व्याख्या171
- गीत86
- ग़ज़ल926
- हाइकु12
- हम्द35
- हास्य-व्यंग37
- संकलन1486
- कह-मुकरनी6
- कुल्लियात636
- माहिया18
- काव्य संग्रह4446
- मर्सिया358
- मसनवी766
- मुसद्दस51
- नात490
- नज़्म1121
- अन्य64
- पहेली16
- क़सीदा174
- क़व्वाली19
- क़ित'अ54
- रुबाई273
- मुख़म्मस18
- रेख़्ती12
- शेष-रचनाएं27
- सलाम32
- सेहरा9
- शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा13
- तारीख-गोई26
- अनुवाद73
- वासोख़्त24
मुल्ला रमूज़ी का परिचय
LCCN :no99036852
मुल्ला रमूज़ी गुलाबी उर्दू के आविष्कारक के रूप में हमारे अदब में पहचाने जाते हैं। ख़ुद उनके शब्दों में गुलाबी उर्दू का मतलब ये है कि वाक्य में शब्दों के क्रम को बदल दिया जाए। जैसे ये कि पहले क्रिया फिर कर्ता और कर्म। इस तरह अरबी से उर्दू अनुवाद का अंदाज़ पैदा होजाता है। बेशक यह लुत्फ़ देता है लेकिन ज़रा देर बाद पाठक उकता जाता है।
मुल्ला रमूज़ी का असल नाम सिद्दीक़ इरशाद था। भोपाल में 1896ई. में पैदा हुए। ये उनका पैतृक स्थान नहीं था। उनके पिता और चचा काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) से आकर भोपाल में रहने लगे। दोनों विद्वान थे इसलिए उच्च नौकरियों से नवाज़े गए। सिद्दीक़ इरशाद उर्दू, फ़ारसी, अरबी की आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद कानपुर के मदरसा इलाहियात में दाख़िल हुए। उसी ज़माने में लेख लिखने का शौक़ हुआ। उनके लेख मानक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। अब उन्होंने अपना क़लमी नाम मुल्ला रमूज़ी रख लिया और साहित्य की दुनिया में इसी नाम से मशहूर हुए।
देश में स्वतंत्रता आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा तो मुल्ला रमूज़ी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सके। राजनीतिक मुद्दों पर अच्छी नज़र थी। सरकार के ख़िलाफ़ हास्यप्रद लेख लिखने लगे जिन्हें पसंद किया गया। कई पत्रिकाओं ने उन्हें संपादक बनाकर गौरवान्वित किया। उसके बाद वहीदिया टेक्नीकल स्कूल में अध्यापक हो गए। सन्1952 में उनका निधन हुआ।
मुल्ला रमूज़ी गद्यकार होने के साथ साथ शायर व वक्ता भी थे। उनके पास प्रशासनिक क्षमता भी थी। इससे फ़ायदा उठाते हुए, शिक्षा व साहित्य के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने कई संस्थाएं स्थापित कीं लेकिन उनकी असल प्रसिद्धि गुलाबी उर्दू पर है जिसके वे आविष्कारक हैं। उनकी यह निराले रंग की किताब “गुलाबी उर्दू” के नाम से 1921ई. में प्रकाशित हुई। उसे सामान्य स्वीकृति मिली लेकिन वो जानते थे कि यह स्वीकृति स्थायी नहीं सामयिक है। इसलिए उन्होंने राजनीति को अपना स्थायी विषय बनाया और सादा व सरल भाषा को अपनाया। हास्य-व्यंग्य स्वभाव में था, इसलिए सादगी में भी हास्य का हल्का हल्का रंग बरक़रार रहा, उसे पसंद किया गया।
वह लिखते हैं कि मेरे लेखों की कोई अहमियत है तो सिर्फ इसलिए कि “मैं हक़ीक़त का दामन नहीं छोड़ता।” सरकार के अत्याचार, सामाजिक अन्याय और सामाजिक बुराइयाँ उन्हें मजबूर करते हैं कि जो कुछ लिखें हास्य की आड़ में लिखें। नतीजा ये कि दिलचस्पी में इज़ाफ़ा हो जाता है।स्रोत : Tareekh-e-Adab-e-Urduसंबंधित टैग
प्राधिकरण नियंत्रण :लाइब्रेरी ऑफ कॉंग्रेस नियंत्रण संख्या : no99036852
join rekhta family!
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Get Tickets
-
बाल-साहित्य1867
-