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मुनव्वर राना

1952 - 2024 | लखनऊ, भारत

लोकप्रिय शायर, मुशायरों का ज़रूरी हिस्सा।

लोकप्रिय शायर, मुशायरों का ज़रूरी हिस्सा।

मुनव्वर राना

ग़ज़ल 45

नज़्म 9

अशआर 105

अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो

तुम मुझे ख़्वाब में कर परेशान करो

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चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

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तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो

तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है

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अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा

मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है

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सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर

मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते

उद्धरण 39

परहेज़ दुनिया की सबसे कारगर दवा है लेकिन सबसे कम इस्तेमाल होती है।

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नींद तो उस नाज़ुक-मिज़ाज बच्ची की तरह है जो सबकी गोद में नहीं जाती।

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मैं ने ग़ुर्बत के दिनों में भी बीवी को हमेशा ऐसे रखा है जैसे मुक़द्दस किताबों में मोर के पर रखे जाते हैं।

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उर्दू मुशायरों की हवेली देखते देखते ही कैसी वीरान होती जा रही है। हवेली की मुंडेरों पर रखे हुए चराग़ एक-एक करके बुझते जा रहे हैं। ऐवान-ए-अदब की तरफ़ ले जाती हुई सबसे ख़ूबसूरत, पुर-विक़ार और पुर-कशिश पगडंडी कितनी सुनसान हो चुकी है। ख़ुदा करे किसी भी ज़बान पर ये बुरा वक़्त आए, कोई कुंबा ऐसे बिखरे, किसी ख़ानदान का इतनी तेज़ी से सफ़ाया हो, किसी क़बीले की ये दुर्दशा हो। अभी कल की बात है कि मुशायरे का स्टेज किसी भरे-पुरे दिहात की चौपाल जैसा था, स्टेज पर रौनक़-अफ़रोज़ मोहतरम शो'अरा किसी देव-मालाई किरदार मा'लूम होते थे। इन ज़िंदा किरदारों की मौजूदगी में तहज़ीब इस तरह फलती-फूलती थी जैसे बरसात के दिनों में इश्क़-ए-पेचाँ ऊँची-ऊँची दीवारों का सफ़र तय करता है।

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थकन मौत की पहली दस्तक का नाम है।

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पुस्तकें 19

चित्र शायरी 9

 

वीडियो 34

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हास्य वीडियो
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मुनव्वर राना

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