aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1908 - 1984 | बदायूँ, भारत
अब कुंज-ए-लहद में हूँ मयस्सर नहीं आँसू
आया है शब-ए-हिज्र का रोना मिरे आगे
इलाज की नहीं हाजत दिल-ओ-जिगर के लिए
बस इक नज़र तिरी काफ़ी है उम्र-भर के लिए
जो दिल को दे गई इक दर्द उम्र-भर के लिए
तड़प रहा हूँ अभी तक मैं उस नज़र के लिए
पीछे मुड़ मुड़ कर न देखो ऐ 'मुनव्वर' बढ़ चलो
शहर में अहबाब तो कम हैं सगे भाई बहुत
'मुनव्वर' मैं ने जब दिल पर नज़र की
मुनव्वर इक चराग़-ए-तूर देखा
Munawwar Naatein
Munawwar Natein
1978
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