मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल 56
नज़्म 1
अशआर 117
आँखें ख़ुदा ने बख़्शी हैं रोने के वास्ते
दो कश्तियाँ मिली हैं डुबोने के वास्ते
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उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज
की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ़ बड़ी बात
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बोसा होंटों का मिल गया किस को
दिल में कुछ आज दर्द मीठा है
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