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मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

1819 - 1911 | लखनऊ, भारत

उत्तर-क्लासिकी शायर, अपने सर्वाधिक लोकप्रिय शेरों के लिए प्रसिद्ध

उत्तर-क्लासिकी शायर, अपने सर्वाधिक लोकप्रिय शेरों के लिए प्रसिद्ध

मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम

ग़ज़ल 16

अशआर 20

सुब्ह होती है शाम होती है

उम्र यूँही तमाम होती है

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आस क्या अब तो उमीद-ए-नाउमीदी भी नहीं

कौन दे मुझ को तसल्ली कौन बहलाए मुझे

नासेह ख़ता मुआफ़ सुनें क्या बहार में

हम इख़्तियार में हैं दिल इख़्तियार में

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तड़पती देखता हूँ जब कोई शय

उठा लेता हूँ अपना दिल समझ कर

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हम ने पाला मुद्दतों पहलू में हम कोई नहीं

तुम ने देखा इक नज़र से दिल तुम्हारा हो गया

पुस्तकें 16

चित्र शायरी 3

 

ऑडियो 11

इक आफ़त-ए-जाँ है जो मुदावा मिरे दिल का

गर यही है आदत-ए-तकरार हँसते बोलते

चारासाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल वक़्त-ए-रफ़ू रोने लगा

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