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मुसव्विर सब्ज़वारी

1932 - 2002 | गुड़गाँव, भारत

प्रतिष्ठित आधुनिक शायर

प्रतिष्ठित आधुनिक शायर

मुसव्विर सब्ज़वारी

ग़ज़ल 62

नज़्म 4

 

अशआर 32

अपने होने का कुछ एहसास होने से हुआ

ख़ुद से मिलना मिरा इक शख़्स के खोने से हुआ

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गुज़रते पत्तों की चाप होगी तुम्हारे सेहन-ए-अना के अंदर

फ़सुर्दा यादों की बारिशें भी मुझे भुलाने के बाद होंगी

वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया

लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह

सजनी की आँखों में छुप कर जब झाँका

बिन होली खेले ही साजन भीग गया

ख़त्म होने दे मिरे साथ ही अपना भी वजूद

तू भी इक नक़्श ख़राबे का है मर जा मुझ में

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पुस्तकें 11

चित्र शायरी 6

 

ऑडियो 13

आँखें यूँ बरसीं पैराहन भीग गया

कई ज़मानों के दरिया-ए-नील छोड़ गया

कड़े हैं कोस सफ़र दूर का ज़रूरी है

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