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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Mushfiq Khwaja's Photo'

मुशफ़िक़ ख़्वाजा

1935 - 2005 | कराची, पाकिस्तान

पाकिस्तान के अग्रणी हास्य-व्यंग लेखक, अपने कॉलम 'ख़ामा-बगोश' के लिए विख्यात।

पाकिस्तान के अग्रणी हास्य-व्यंग लेखक, अपने कॉलम 'ख़ामा-बगोश' के लिए विख्यात।

मुशफ़िक़ ख़्वाजा के शेर

ये लम्हा लम्हा ज़िंदा रहने की ख़्वाहिश का हासिल है

कि लहज़ा लहज़ा अपने आप ही में मर रहा हूँ मैं

मिरी नज़र में गए मौसमों के रंग भी हैं

जो आने वाले हैं उन मौसमों से डरना क्या

दिल एक और हज़ार आज़माइशें ग़म की

दिया जला तो था लेकिन हवा की ज़द पर था

नज़र चुरा के वो गुज़रा क़रीब से लेकिन

नज़र बचा के मुझे देखता भी जाता था

ये हाल है मिरे दीवार-ओ-दर की वहशत का

कि मेरे होते हुए भी मकान ख़ाली है

हज़ार बार ख़ुद अपने मकाँ पे दस्तक दी

इक एहतिमाल में जैसे कि मैं ही अंदर था

बुझे हुए दर-ओ-दीवार देखने वालो

उसे भी देखो जो इक उम्र याँ गुज़ार गया

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