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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Muzafarunnisa Naz's Photo'

मुज़फ़्फ़रुन्निसा नाज़

1946

मुज़फ़्फ़रुन्निसा नाज़

अशआर 4

गुफ़्तुगू में तसल्ली ख़ामुशी में सदा

सुलूक-ए-दोस्त का अंदाज़ ही निराला है

शहर की भीड़ में आँखें जिसे खो देती हैं

दिल के आँगन में वही शख़्स खड़ा होता है

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क़दम उठाए हैं हम ने भी इस यक़ीन के साथ

जहाँ से गुज़रेंगे हम तेरी रहगुज़र होगी

प्यार करने वालों का सिर्फ़ एक सहरा है

सारे शहर उस के हैं सारी बस्तियाँ उस की

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ग़ज़ल 5

 

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