मुज़फ़्फ़र अबदाली
ग़ज़ल 11
नज़्म 4
अशआर 5
कश्तियाँ लिखती रहें रोज़ कहानी अपनी
मौज कहती ही रही ज़ेर-ओ-ज़बर मैं ही हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
ख़ुदा भी कैसा हुआ ख़ुश मिरे क़रीने पर
मुझे शहीद का दर्जा मिला है जीने पर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
बहकना मेरी फ़ितरत में नहीं पर
सँभलने में परेशानी बहुत है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रेत पर इक निशान है शायद
ये हमारा मकान है शायद
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
रह-गुज़र का है तक़ाज़ा कि अभी और चलो
एक उम्मीद जो मंज़िल के निशाँ तक पहुँची
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
वीडियो 10
This video is playing from YouTube