नईम सिद्दीक़ी के शेर
शब कितनी बोझल बोझल है हम तन्हा तन्हा बैठे हैं
ऐसे में तुम्हारी याद आई जिस तरह कोई इल्हाम आए
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निशाँ तो तेरे चलने से बनेंगे
यहाँ तू ढूँडता है नक़्श-ए-पा क्या
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