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नसीम निकहत

1958 - 2023 | लखनऊ, भारत

नसीम निकहत

ग़ज़ल 17

अशआर 4

माना कि मैं हज़ार फ़सीलों में क़ैद हूँ

लेकिन कभी ख़ुलूस से मुझ को बुला के देख

अपने चेहरे को बदलना तो बहुत मुश्किल है

दिल बहल जाएगा आईना बदल कर देखो

बंजारे हैं रिश्तों की तिजारत नहीं करते

हम लोग दिखावे की मोहब्बत नहीं करते

मुझ को ये दर-ब-दरी तू ने ही बख़्शी है मगर

जब चली घर से तो मैं नाम तिरा ले के चली

पुस्तकें 5

 

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