नय्यर सुल्तानपुरी के शेर
पहुँचा न था यक़ीन की मंज़िल पे मैं अभी
मेरा ख़याल मुझ से भी आगे निकल गया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बढ़ने लगी यक़ीन ओ गुमाँ में जो कश्मकश
व'अदा भी सुब्ह ओ शाम पे टलता चला गया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सीने पे कितने दाग़ लिए फिर रहा हूँ मैं
ज़ख़्मों का एक बाग़ लिए फिर रहा हूँ मैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दी है 'नय्यर' मुझ को साक़ी ने ये कैसी ख़ास मय
सब की नज़रें उठ रही हैं मेरे साग़र की तरफ़
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड