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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नज़ीर क़ैसर

ग़ज़ल 34

अशआर 18

बरस रही थी बारिश बाहर

और वो भीग रहा था मुझ में

कोई मुझ को ढूँढने वाला

भूल गया है रस्ता मुझ में

यूँ तुझे देख के चौंक उठती हैं सोई यादें

जैसे सन्नाटे में आवाज़ लगा दे कोई

बिखरता जाता है कमरे में सिगरटों का धुआँ

पड़ा है ख़्वाब कोई चाय की प्याली में

बच्चे ने तितली पकड़ कर छोड़ दी

आज मुझ को भी ख़ुदा अच्छा लगा

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