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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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नाज़िश प्रतापगढ़ी

1924 - 1984 | लखनऊ, भारत

नाज़िश प्रतापगढ़ी

ग़ज़ल 10

नज़्म 11

अशआर 4

होगा राएगाँ ख़ून-ए-शहीदान-ए-वतन हरगिज़

यही सुर्ख़ी बनेगी एक दिन उनवान-आज़ादी

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ख़ुदा काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक़्त भी लाए

कि जब हिन्दोस्तान कहलाएगा हिन्दोस्तान-ए-आज़ादी

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जवानो नज़्र दे दो अपने ख़ून-ए-दिल का हर क़तरा

लिखा जाएगा हिन्दोस्तान को फ़रमान-ए-आज़ादी

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तह बह तह जमती चली जाती है सन्नाटों की गर्द

हाल-ए-दिल सब देखते हैं पूछता कोई नहीं

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