परतव रोहिला के दोहे
आँख से ओझल हो और टूटे पर्बत जैसी प्रीत
मुँह देखे की यारी 'परतव' शीशे की सी प्रीत
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तेरे मिलन का सुख न पाया पीत हुई जंजाल
साजन मेरे मन में धड़के बिर्हा का घड़ियाल
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साजन तुम तो आप ही भूले अपने प्रीत के बोल
अब मैं किस के द्वारे जाऊँ ले चाहत कश्कोल
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