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क़द्र बिलग्रामी

1933 - 1884 | लखनऊ, भारत

क़द्र बिलग्रामी

ग़ज़ल 17

अशआर 3

जहाँ गुलशन वहाँ गुल है जहाँ गुल है वहाँ बू है

जहाँ उल्फ़त वहाँ मैं हूँ जहाँ मैं हूँ वहाँ तू है

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अफ़्सुर्दा-दिल के वास्ते क्या चाँदनी का लुत्फ़

लिपटा पड़ा है मुर्दा सा गोया कफ़न के साथ

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देखना ग़ाफ़िल रहना चश्म-ए-तर से देखना

आइना जब देखना मेरी नज़र से देखना

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