क़मर मुरादाबादी के शेर
किसी की राह में काँटे किसी की राह में फूल
हमारी राह में तूफ़ाँ है देखिए क्या हो
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ग़म की तौहीन न कर ग़म की शिकायत कर के
दिल रहे या न रहे अज़मत-ए-ग़म रहने दे
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मुद्दतों बाद जो इस राह से गुज़रा हूँ 'क़मर'
अहद-ए-रफ़्ता को बहुत याद किया है मैं ने
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जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया
इश्क़ ख़ुद तर्क ओ तलब से बे-ख़बर होता गया
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टैग : इश्क़
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यूँ न मिलने के सौ बहाने हैं
मिलने वाले कहाँ नहीं मिलते
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लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-जिगर याद आई
फिर तिरी पहली नज़र याद आई
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हर्फ़ आने न दिया इश्क़ की ख़ुद्दारी पर
काम नाकाम तमन्ना से लिया है मैं ने
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मंज़िलों के निशाँ नहीं मिलते
तुम अगर ना-गहाँ नहीं मिलते
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दैर ओ काबा से जो हो कर गुज़रे
दोस्त की राहगुज़र याद आई
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क़दम उठे भी नहीं बज़्म-ए-नाज़ की जानिब
ख़याल अभी से परेशाँ है देखिए क्या हो
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