क़ाज़ी महमूद बेहरी
ग़ज़ल 8
अशआर 2
यक नुक्ता नुक्ता-दाँ कूँ है काफ़ी शनास का
ऐ क़िस्सा-ख़्वाँ न बोल हिकायत क़यास का
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बर-अक्स क्यूँ हुआ है ज़माने के फेर में
हैराँ है कोई दुख में किसे दस्तरस हुआ
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