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राज़ यज़दानी

1908 - 1963

राज़ यज़दानी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 4

सज़ा के झेलने वाले ये सोचना है गुनाह

कोई क़ुसूर भी तुझ से कभी हुआ कि नहीं

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ठहर के तलवों से काँटे निकालने वाले

ये होश है तो जुनूँ कामयाब क्या होगा

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अगर गुनाह के क़िस्से भी कह दिए तुझ से

गुनाहगार को यारब सवाब क्या होगा

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वो सामने सर-ए-मंज़िल चराग़ जलते हैं

जवाब पाँव देते तो मैं कहाँ होता

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