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रद करें डाउनलोड शेर

रफ़ीक राज़

ग़ज़ल 32

अशआर 4

तू मेरे सज्दों की लाज रख ले शुऊर-ए-सज्दा नहीं है मुझ को

ये सर तिरे आस्ताँ से पहले किसी के आगे झुका नहीं है

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रूह में जिस ने ये दहशत सी मचा रक्खी है

उस की तस्वीर गुमाँ भर तो बना सकते हैं

क़ातिल को रौशनी में दिखाई दिया मैं

ऐसी चमक थी ख़ंजर-ए-बुर्रां में बच गया

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सियाह दश्त की जानिब सफ़र दोबारा किया

जाने क़ाफ़ की परियों ने क्या इशारा किया

पुस्तकें 4

 

ऑडियो 6

इक धुआँ उठ रहा है आँगन से

इक फ़लक और ही सर पर तो बना सकते हैं

एक सहरा है मिरी आँख में हैरानी का

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