राग़िब मुरादाबादी के शेर
जिसे कहते हो तुम इक क़तरा-ए-अश्क
मिरे दिल की मुकम्मल दास्ताँ है
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हक़ीक़त को छुपाया हम से क्या क्या उस के मेक-अप ने
जिसे लैला समझ बैठे थे वो लैला की माँ निकली
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ख़ुदा कातिब की सफ़्फ़ाकी से भी महफ़ूज़ फ़रमाए
अगर नुक़्ता उड़ा दे नाम-ज़द नामर्द हो जाए
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