राजेन्द्र नाथ रहबर के शेर
कहीं ज़मीं से तअल्लुक़ न ख़त्म हो जाए
बहुत न ख़ुद को हवा में उछालिए साहिब
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एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊँगा
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बैठे रहो कुछ देर अभी और मुक़ाबिल
अरमान अभी दिल के हमारे नहीं निकले
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मैं था किसी की याद थी जाम-ए-शराब था
ये वो नशिस्त थी जो सहर तक जमी रही
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