राजेश रेड्डी
ग़ज़ल 35
अशआर 39
इजाज़त कम थी जीने की मगर मोहलत ज़ियादा थी
हमारे पास मरने के लिए फ़ुर्सत ज़ियादा थी
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क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून
नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम
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नींद को ढूँड के लाने की दवाएँ थीं बहुत
काम मुश्किल तो कोई ख़्वाब हसीं ढूँढना था
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बुलंदी के लिए बस अपनी ही नज़रों से गिरना था
हमारी कम-नसीबी हम में कुछ ग़ैरत ज़ियादा थी
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मैं ने तो ब'अद में तोड़ा था इसे
आईना मुझ पे हँसा था पहले
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चित्र शायरी 6
वीडियो 18
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