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राजिंदर सिंह बेदी

1915 - 1984 | मुंबई, भारत

उर्दू के महत्वपूर्ण अफ़साना निगारों में शामिल, मंटो के समकालीन, भारतीय समाज और लोक कथाओं से सम्बंधित कहानियां बुनने के लिए मशहूर. नॉवेल, ड्रामेऔर फिल्मों के लिए संवाद व स्क्रिप्ट लिखे.

उर्दू के महत्वपूर्ण अफ़साना निगारों में शामिल, मंटो के समकालीन, भारतीय समाज और लोक कथाओं से सम्बंधित कहानियां बुनने के लिए मशहूर. नॉवेल, ड्रामेऔर फिल्मों के लिए संवाद व स्क्रिप्ट लिखे.

राजिंदर सिंह बेदी के उद्धरण

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मैं ख़फ़ा हूँ, बेहद ख़फ़ा इंसान से, देवी से, ख़ुदा से और इस तजाहुल से जिसे इंसानियत का एक बहुत बड़ा हिस्सा ‎ख़ुदा‏‎ के नाम से याद करता है।

औरतें बीसियों, सैकड़ों हो सकती हैं, माँ सिर्फ़ एक होती है।

फ़न किसी शख़्स में सोते की तरह नहीं फूट निकलता। ऐसा नहीं कि आज रात आप सोएँगे और सुब्ह फ़नकार हो कर ‎जागें‏गे। ये नहीं कहा जा सकता कि फ़ुलाँ आदमी पैदाइशी तौर पर फ़नकार है, लेकिन ये ज़रूर कहा जा सकता है कि ‎उसमें सलाहियतें ‎‏हैं, जिनका होना बहुत ज़रूरी है, चाहे वो उसे जिबिल्लत में मिलें और या वो रियाज़त से उनका ‎इक्तिसाब करे। पहली सलाहियत ‎‏तो ये कि वो हर बात को दूसरों के मुक़ाबले में ज़ियादा महसूस करता हो, जिसके ‎लिए एक तरफ़ तो वो दाद-ओ-तहसीन पाए‏‎ और दूसरी तरफ़ ऐसे दुःख उठाए जैसे कि उसके बदन पर से खाल खींच ‎ली गई हो और उसे नमक की कान से गुज़रना पड़ रहा ‎‏हो।

अगर ये बात ठीक है कि मेहमान का दर्जा भगवान का है तो मैं बड़ी नम्रता से आपके सामने हाथ जोड़ कर कहूँगा कि ‎मुझे ‎‏भगवान से भी नफ़रत है।‏

अफ़साने और शे'र में कोई फ़र्क़ नहीं। है, तो सिर्फ़ इतना कि शे'र छोटी बहर में होता है और अफ़साना एक ऐसी लंबी ‎और‏‎ मुसलसल बहर में जो अफ़साने के शुरू' से लेकर आख़िर तक चलती है। मुब्तदी इस बात को नहीं जानता और ‎अफ़साने को ब-हैसीयत‏‎-ए-फ़न-ए-शे'र से ज़ियादा सहल समझता है।

बीवी आपसे कितनी नफ़रत करती है, इसका उस वक़्त तक पता नहीं चलता, जब तक मेहमान घर में आए। जैसे ‎आपको‏‎ भूलने के सिवा कुछ नहीं आता, ऐसे ही बीवी याद रखने के सिवा और कुछ नहीं जानती। जाने कब का बुग़्ज़ ‎आपके ख़िलाफ़‏‎ सीने में लिए बैठी है जो मेहमान के आते ही पंडोरा बॉक्स की तरह आपके सिर पर उलट देती है।‏

ग़ज़ल का शे'र किसी खुरदुरे-पन का मुतहम्मिल नहीं हो सकता, लेकिन अफ़साना हो सकता है। बल्कि नस्री नज़ाद ‎होने की वजह से उसमें खुरदरा-पन होना ही चाहिए, जिससे वो शे'र से मुमय्यज़ हो सके।

कोई फ़न्कार अपने पेशे से रोटियाँ नहीं निकाल सका। लेखक को साथ में प्याज़ की दुकान ज़रूर खोलनी चाहिए।

हर माक़ूल आदमी का बीवी से झगड़ा होता है क्योंकि मर्द औरत का रिश्ता ही झगड़े का है।‏

ये तय बात है कि अफ़साने का फ़न ज़ियादा रियाज़त और डिसिप्लिन माँगता है। आख़िर इतनी लंबी और मुसलसल ‎बहर से नबर्द-आज़मा होने के‏‎ लिए बहुत सी सलाहियतें और क़ुव्वतें तो चाहिएं ही। बाक़ी अस्नाफ़-ए-अदब, जिनमें ‎नॉवेल भी शामिल है, उनकी तरफ़ जुज़वन-जुज़वन तवज्जोह दी जा सकती है, लेकिन अफ़साने में जुज़्व-ओ-कल ‎को एक साथ रख कर आगे बढ़ना पड़ता है। उसका हर अव्वल, मुतदाविल और ‎‏आख़िरी दस्ता मिलकर बढ़ें तो ये ‎जंग जीती नहीं जा सकती।

दुनिया में हसीन औरत के लिए जगह है तो अक्खड़ मर्द के लिए भी है, जो अपने अक्खड़पन ही की वजह से सिन्फ़-ए-नाज़ुक को ‎‏मर्ग़ूब है। फ़ैसला अगरचे औरत पे नहीं, मगर वो भी किसी ऐसे मर्द को पसंद नहीं करती जो नक़्ल में भी उसकी चाल ‎‏चले।‏

हर बीवी किसी इंतिक़ामी जज़्बे से चाहती है कि मर्द को वो बे-भाव की पड़ें कि नानी याद जाए और फिर वो बे-‎दस्त-ओ-पा हो कर उसकी शरण में चला आए। जब वो उसे ऐसा प्यार दे जो माँ ही अपने बच्चे को दे सकती है।

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