रंगीन सआदत यार ख़ाँ के शेर
बादल आए हैं घिर गुलाल के लाल
कुछ किसी का नहीं किसी को ख़याल
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टैग : होली
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ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं
नाव काग़ज़ की कहीं चलती नहीं
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झूटा कभी न झूटा होवे
झूटे के आगे सच्चा रोवे
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पा-बोस-ए-यार की हमें हसरत है ऐ नसीम
आहिस्ता आइओ तू हमारे मज़ार पर
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वो न आए तो तू ही चल 'रंगीं'
इस में क्या तेरी शान जाती है
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ता हश्र रहे ये दाग़ दिल का
या-रब न बुझे चराग़ दिल का
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था जहाँ मय-ख़ाना बरपा उस जगह मस्जिद बनी
टूट कर मस्जिद को फिर देखा तो बुत-ख़ाने हुए
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मनअ करते हो अबस यारो आज
उस के घर जाएँगे पर जाएँगे हम
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है ये दुनिया जा-ए-इबरत ख़ाक से इंसान की
बन गए कितने सुबू कितने ही पैमाने हुए
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